Pitru Paksha 2025: महत्व, पौराणिक मान्यताएँ, श्राद्ध विधि, क्या करें और क्या न करें | Pind Daan in Varanasi

Pitru Paksha

पितृ पक्ष (Pitru Paksha) हिन्दू धर्म का ऐसा पवित्र समय है जो पूरी तरह से हमारे पूर्वजों (Ancestors / पितरों) को समर्पित होता है। यह समय हर साल भाद्रपद मास (Bhadrapada Month) की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तक चलता है। कुल मिलाकर यह 16 दिन की अवधि होती है जिसे श्राद्ध पक्ष (Shraddha Paksha) भी कहा जाता है।

मान्यता है कि इस समय हमारे पितरों की आत्माएँ पृथ्वी लोक पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान की अपेक्षा करती हैं। यदि वंशज श्रद्धा से इन कर्मों को करते हैं तो पितरों की आत्माएँ तृप्त होती हैं और आशीर्वाद देती हैं।

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पितृ पक्ष की पौराणिक कथा (Mythology & Legends of Pitru Paksha)

महाभारत और कर्ण की कथा

महाभारत में एक प्रसिद्ध कथा आती है – कर्ण जब स्वर्ग गए तो उन्हें सोना-चाँदी सब मिला लेकिन भोजन नहीं मिला। जब उन्होंने यमराज से कारण पूछा तो बताया गया कि जीवनकाल में उन्होंने कभी अपने पितरों के लिए भोजन अर्पित नहीं किया था। तब कर्ण को वापस पृथ्वी पर भेजा गया और 16 दिनों तक उन्होंने अपने पितरों का श्राद्ध किया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और इसे पितृ पक्ष कहा जाने लगा।

गरुड़ पुराण का उल्लेख

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है, वह अपने परिवार में समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति लाता है। इसके विपरीत यदि कोई इन कर्मों की अवहेलना करता है तो उसे पितृ दोष (Pitru Dosh) का सामना करना पड़ता है।

(Pitru Dosha)

पितृ दोष का अर्थ है – जब पूर्वजों की आत्माएँ संतुष्ट नहीं होतीं और उनके आशीर्वाद के स्थान पर वंशजों को बाधाएँ मिलती हैं। यह दोष व्यक्ति की कुंडली में भी दिख सकता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध और पिंडदान करके इस दोष को दूर किया जा सकता है।


Pitru Paksha 2025 की तिथियाँ (Dates of Pitru Paksha 2025)

  • प्रारंभ तिथि: 7 सितंबर 2025, रविवार
  • समाप्ति तिथि: 21 सितंबर 2025, रविवार (पितृ अमावस्या)
  • मातृ नवमी (Matru Navami): 15 सितंबर 2025, सोमवार

मातृ नवमी विशेष रूप से उन माताओं के लिए श्राद्ध की जाती है जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो।


पितृ पक्ष का महत्व (Significance of Pitru Paksha)

  1. पितरों की आत्मा की शांति (Peace for Ancestors): श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से आत्माओं को तृप्ति मिलती है।
  2. पितृ दोष निवारण (Remedy for Pitru Dosh): ग्रहों से जुड़े दोष और पारिवारिक समस्याएँ कम होती हैं।
  3. पारिवारिक समृद्धि (Family Prosperity): घर में धन, आरोग्य और संतोष बढ़ता है।
  4. धर्म पालन (Dharma): पितरों की सेवा करना पुत्र/पुत्री का कर्तव्य माना गया है।
  5. आध्यात्मिक लाभ (Spiritual Growth): आत्मा के उद्धार और मोक्ष की दिशा में एक बड़ा कदम।

Pitru Paksha में किए जाने वाले मुख्य अनुष्ठान (Main Rituals of Pitru Paksha)

1. श्राद्ध (Shraddha)

श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से अपने पितरों का स्मरण और भोजन अर्पित करना। इसमें चावल, तिल, जौ और जल से पिंड बनाए जाते हैं।

2. तर्पण (Tarpan)

तर्पण का अर्थ है जल अर्पण। इसमें काला तिल, जौ और कुशा डालकर पितरों को जल अर्पित किया जाता है।

3. पिंडदान (Pind Daan)

पिंडदान को सबसे प्रभावी अनुष्ठान माना गया है। इसे विशेष रूप से वाराणसी (Varanasi), गया (Gaya), हरिद्वार और प्रयागराज में करना अत्यंत पुण्यकारी है।

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पितृ पक्ष में क्या करें (Do’s in Pitru Paksha)

  1. प्रतिदिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. अपने पितरों की तिथि पर श्राद्ध व तर्पण करें।
  3. ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दक्षिणा दें।
  4. गाय, कुत्ते, कौवे और जरूरतमंदों को भोजन कराएँ।
  5. सात्विक भोजन पकाएँ — बिना प्याज और लहसुन के।
  6. दान करें (Donation) – अन्न, वस्त्र, जल और धन।
  7. मंत्र जाप करें – गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र।

पितृ पक्ष में क्या न करें (Don’ts in Pitru Paksha)

  1. मांसाहार, शराब और तंबाकू का सेवन न करें।
  2. बाल कटाना, दाढ़ी बनाना और नाखून काटना वर्जित है।
  3. इस अवधि में शादी, जन्मदिन या गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य न करें।
  4. नए कपड़े, गहने या संपत्ति न खरीदें।
  5. अनावश्यक दिखावा या शोरगुल न करें।

Pitru Paksha का वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Aspect)

  • यह समय वर्षा ऋतु के बाद आता है जब वातावरण शुद्ध होता है।
  • भोजन, दान और सेवा से समाज में संतुलन आता है।
  • मानसिक शांति और पारिवारिक जुड़ाव बढ़ता है।

वाराणसी में पिंडदान (Pind Daan in Varanasi)

वाराणसी (काशी) को मोक्ष की नगरी कहा गया है। यहाँ पिंडदान करने से पितरों को सीधा मोक्ष मिलता है।

  • गंगा तट पर किए गए पिंडदान का विशेष महत्व है।
  • ब्राह्मणों और पंडितों के मार्गदर्शन में किए गए अनुष्ठान से 14 पीढ़ियों तक के पूर्वजों को शांति मिलती है।
  • यही कारण है कि हर साल हजारों लोग वाराणसी आकर पिंडदान करते हैं।

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Conclusion

पितृ पक्ष सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है बल्कि यह हमारे संस्कारों और परिवार की जड़ों को मजबूत करने का समय है। पितरों की आत्मा को शांति देने के साथ-साथ हमें उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

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FAQs (प्रश्न और उत्तर)


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