
नवरात्रि संस्कृत का शब्द है — “नव” (Nine) + “रात्रि” (Nights) यानी नौ रातों का त्योहार। शारदीय नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो माँ Durga के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। यह आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है। इस समय देवी शक्ति (Divine Shakti) का आगमन माना जाता है जो अंधकार, पाप, अधर्म पर विजय प्राप्त करती है।
मिथकीय दृष्टिकोण (Mythological View):
- देवी दुर्गा का अवतार इसलिए हुआ क्योंकि असुर महिषासुर ने देवताओं का सत्यानाश कर दिया था। देवताओं ने मिलकर शक्ति पूजा की, और महिषासुर व अन्य दुष्ट असुरों का संहार करने हेतु माँ दुर्गा प्रकट हुईं।
- देवी के नौ स्वरूप (Navadurga) इन नौ दिनों में अलग-अलग रूप से पूजी जाती हैं, प्रत्येक स्वरूप का अपना महत्व है।
- इसके साथ ही नवरात्रि सौभाग्य, समृद्धि, रक्षा, शांति, आत्मन् उद्दीपन (spiritual upliftment) आदि की कामनाएँ लेकर आती है।
इस वर्ष का नवरात्रि: तिथियाँ, शुभ मुहूर्त (Important Dates & Shubh Muhurt)
शारदीय नवरात्रि २०२५ के लिए मुख्य तिथियाँ और मुहूर्त इस प्रकार हैं: (Drik Panchang)
कार्य (Event) | तिथि / दिन | शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurt / Auspicious Time) |
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नवरात्रि आरंभ (Pratipada Tithi begins) | 22 सितंबर 2025 (सोमवार), आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि | Pratipada तिथि सुबह 1:23 बजे से शुरू |
घटस्थापना / कलश स्थापना (Ghatasthapana / Kalash Sthapana) | 22 सितंबर 2025 (पहले दिन) | सुबह का शुभ मुहूर्त: 06:09 AM – 08:06 AM मध्याह्न में अभिजीत मुहूर्त: 11:49 AM – 12:38 PM |
नवरात्रि का समापन (Navaratri End) / नवमी तिथि | 1 अक्टूबर 2025 (बुधवार) | — |
विजया दशमी (Vijayadashami / Dussehra) | 2 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) | — |
नोट: शुभ मुहूर्त स्थान और पंचांग के अनुसार बदल सकता है।
कलश/घट स्थापना विधि (Kalash Sthapana / Ghatasthapana Vidhi)
कलश या घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की सबसे महत्वपूर्ण पूजा-विधियों में से एक है। इसे इस तरह किया जाता है:
- तैयारी
- पूजा स्थल (घर का मंदिर या पूजास्थल) अच्छे से साफ किया जाता है। स्नान, नए वस्त्र पहनना उत्तम।
- पूजा सामग्री: कलश (तांबे, तांबे/ताँबे/सोने चांदी या मिट्टी का हो सकता है), नारियल, मौली, आम / अशोक / पांच पत्ते (पंच पल्लव), हल्दी, अक्षत (uncooked rice with turmeric), सुपारी, सिक्का, फूल, जौ के बीज आदि। (Astroyogi)
- घट / बेस तैयार करना
- एक पात्र में मिट्टी और बालू मिलाकर “पीठ” (pedestal) बनाना।
- उसमें कुछ जौ के बीज बोना (“सविता बीज”) ताकि वृद्धि हो — यह समृद्धि और सकारात्मकता का प्रतीक है।
- कलश स्थापना
- कलश में जल (पवित्र जल, गंगाजल यदि संभव हो) भरना।
- कलश के मुँह पर मौली बाँधना।
- कलश के चारों ओर पंच पत्ते रखना।
- नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर कलश के ऊपर / घटी के ऊपर रखना।
- हल्दी, अक्षत, फूल, सुपारी, सिक्का आदि अर्पित करना।
- मंत्र जाप एवं देवता आह्वान
- पूजा के दौरान देवी दुर्गा के प्रमुख मन्त्रों का जाप करना।
- सभी देवी-देवताओं, यज्ञ-योगिनि, ग्रह-नक्षत्र आदि का कलश में आह्वान।
- अखण्ड ज्योति
- कुछ स्थानों पर कलश स्थापना के बाद अखण्ड ज्योति (दीप) जलाते हैं, जो नवरात्रि के नौ दिन तक जलती रहे। यह माँ की निरन्तर उपस्थिति का प्रतीक है।
- पूजा समापन
- पुष्प, नैवेद्य (भोग), दुर्गा सप्तशती / देवी स्तोत्रों का पाठ करना।
- अंत में धन्यवाद और प्रार्थना कि माँ दुर्गा इस कलश में निवास करें और अपने भक्तों पर कृपा करें।
नवरात्रि के नौ दिन — देवी के नाम, कार्य, मंत्र (Nine Days – Names, Significance, Mantras)

दिन | देवी का नाम (Devi Name) | स्वरूप का महत्व (Significance) | मंत्र / स्तुति (Mantra/Stuti) |
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दिन 1 | Shailaputri | पहाड़ की पुत्री, शक्ति और संकल्प की प्रतीक। जहां से आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ होती है। | ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः या “या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता:, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः“ |
दिन 2 | Brahmacharini | तपस्या, ब्रह्मचर्य, संतोष और श्रद्धा की प्रतीक। | ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः |
दिन 3 | Chandraghanta | साहस, वीरता, डर का नाश। कलात्मकता में शक्ति। | ॐ देवी चंद्रघण्टायै नमः |
दिन 4 | Kushmanda | सृष्टि निर्माण, प्रकाश, ऊर्जा की शुरुआत। | ॐ ऐं क्लीं कूष्मांडायै नमः |
दिन 5 | Skandamata | माँ के रूप में कार्य, मातृभक्ति, करुणा। | ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः |
दिन 6 | Katyayani | युद्ध की देवी, असुरों का विनाश करने वाली शक्ति, पुरुषार्थ। | ॐ देवी कात्यायन्यै नमः |
दिन 7 | Kalaratri | भय, अंधकार, अज्ञान का नाश। रात की तरह सभी डर को मिटाने वाली। | एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥ |
दिन 8 | Mahagauri | पवित्रता, सौम्यता, शांति, शुद्धता का प्रतीक। | ॐ महागौर्यै नमः |
दिन 9 | Siddhidhatri | सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी; आध्यात्मिक पूर्णता। | सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥ वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥ स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥ |
कन्या पूजन (Kanya Puja) — उद्देश्य और विधि (Purpose & Procedure)
उद्देश्य (Significance)
- देवी शक्ति का स्वरूप: कन्या को माँ दुर्गा का प्रतिनिधि माना जाता है। उनकी मासूमियत, पवित्रता और शक्ति को दर्शाते हैं।
- शक्ति एवं स्त्री सम्मान: यह रीत समाज में स्त्रियों और कन्याओं के सम्मान और उनकी शक्ति को मान्यता देती है।
- मिथकीय कारण: पुराणों में कहा गया है कि देवी ने कन्या स्वरूप धारण किया था, या कन्याओं को देवी स्वरूप देखा गया, विशेषकर असुरों के संहार के समय।
- पाप शोधन और पुण्य अर्जन: इससे भक्तों का मन, घर, परिवार पवित्र होता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
विधि (Procedure)
- कन्याओं के पैर धोकर उनका स्वागत करें।
- उन्हें लाल चुनरी, कलाई में मौली और फूल अर्पित करें।
- भोजन में पूड़ी, चना और हलवा खिलाएँ।
- दक्षिणा, उपहार या वस्त्र देकर विदा करें।
FAQ (Frequently Asked Questions)
Conclusion
शारदीय नवरात्रि सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से पुनर्जीवित करने, भीतर की शक्ति को पहचानने, सकारात्मकता बढ़ाने, धर्म-अधर्म के बीच की लड़ाई में अच्छाई की विजय का प्रतीक है। कलश स्थापना से लेकर कन्या पूजन तक हर अनुष्ठान इस विश्वास को मजबूत करता है कि माँ दुर्गा अपने भक्तों को आशा, शक्ति और करुणा प्रदान करती हैं।