
भारत की धरती विविधताओं से भरी हुई है — यहाँ हर पर्व, हर उत्सव के पीछे एक गहरी आस्था और परंपरा जुड़ी है। Chhath Puja (छठ पूजा) उन्हीं महान पर्वों में से एक है जो न केवल सूर्य देव (Lord Surya) की उपासना का प्रतीक है, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच के अद्भुत संबंध को भी दर्शाती है।
यह पर्व खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है।
छठ पूजा क्या है? (What is Chhath Puja?)
छठ पूजा एक प्राचीन Hindu Vedic festival है जो सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है।
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह दीपावली के छठे दिन आता है, इसलिए इसे “छठ” कहा जाता है।
इस पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है — क्योंकि वे ही जीवन, ऊर्जा और शक्ति के स्रोत हैं।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? (Why Chhath Puja is Celebrated?)
छठ पूजा मनाने के पीछे पौराणिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं।
पौराणिक कारण (Mythological Value)
- महाभारत में उल्लेख है कि कुंती और द्रौपदी ने पुत्र प्राप्ति और सुख-समृद्धि की कामना से छठ व्रत किया था।
- रामायण के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे, तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की उपासना की।
- ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने अपने जीवन में हर दिन सूर्य को अर्घ्य दिया था, जिससे उन्हें अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई थी।
- छठी मैया को प्रकृति की देवी और संतान की रक्षक माना जाता है — इसलिए महिलाएँ संतान सुख और परिवार की भलाई के लिए यह व्रत रखती हैं।
वैज्ञानिक कारण
छठ पूजा के दौरान जो अनुष्ठान किए जाते हैं (जैसे सूर्य स्नान, उपवास, ध्यान), उनका शरीर की शुद्धि और मानसिक स्थिरता से गहरा संबंध है।
सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन D का निर्माण होता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।
छठ पूजा 2025 की तारीखें और शेड्यूल (Chhath Puja 2025 Schedule)
| दिन | तिथि (2025) | कार्यक्रम | विवरण |
|---|---|---|---|
| पहला दिन – नहाय खाय (Nahay Khay) | 25 अक्टूबर 2025 | व्रती महिलाएँ पवित्र स्नान करके सादगीपूर्ण भोजन ग्रहण करती हैं | व्रत की शुरुआत |
| दूसरा दिन – खरना (Kharna) | 26 अक्टूबर 2025 | पूरे दिन निर्जला व्रत और शाम को गुड़-चावल का प्रसाद | ऊर्जा की शुद्धि |
| तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya) | 27 अक्टूबर 2025 | डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है | सूर्य को धन्यवाद |
| चौथा दिन – उषा अर्घ्य (Usha Arghya) | 28 अक्टूबर 2025 | उगते सूर्य को अर्घ्य और व्रत का समापन | जीवन के नए आरंभ की कामना |
पहला दिन: नहाय खाय (Nahay Khay) – शुद्धता की शुरुआत
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय कहलाता है। इस दिन व्रती महिलाएँ या पुरुष गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
इसके बाद घर को शुद्ध-साफ किया जाता है।
इस दिन का मुख्य नियम है — सात्विक भोजन ग्रहण करना, जिसमें लौकी-भात (lauki bhat) और चना दाल प्रमुख है।
भोजन केवल शुद्ध घी में बनाया जाता है और उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो व्रत करेगा।
➡️ महत्व: यह दिन शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि का प्रतीक है।
यह व्रती के मन में संयम और अनुशासन की भावना पैदा करता है।
🍚 दूसरा दिन: खरना (Kharna) – उपवास और आत्मसंयम
छठ पूजा का दूसरा दिन सबसे कठिन और पवित्र माना जाता है। इस दिन व्रती पूरा दिन निर्जला उपवास रखते हैं यानी न जल ग्रहण करते हैं, न भोजन।
शाम को सूर्यास्त के बाद व्रती गुड़, चावल और दूध से बनी खीर का प्रसाद बनाते हैं, जिसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के साथ ग्रहण किया जाता है।
➡️ महत्व:
- यह दिन आत्म-संयम और तपस्या का प्रतीक है।
- शरीर को सूर्य की ऊर्जा के अनुरूप तैयार किया जाता है।
- व्रती के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya) – डूबते सूर्य को अर्पण
तीसरे दिन का महत्व सबसे अधिक होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और संध्या के समय डूबते सूर्य (Setting Sun) को जल अर्पित करते हैं।
महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में सजी होती हैं, सिर पर सूप लेकर सूर्य देव की आराधना करती हैं।
सूप में रखे प्रसाद:
- ठेकुआ
- नारियल
- केला
- गन्ना
- नींबू
- फल और दीपक
पूरे वातावरण में “छठी मईया के गीत” गूंजते हैं, और घाटों पर अद्भुत दृश्य होता है।
➡️ महत्व:
डूबते सूर्य को अर्घ्य देना जीवन की समाप्ति या बुराई के अंत का प्रतीक है।
यह इस बात का संकेत देता है कि हर अंत एक नई शुरुआत है।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य (Usha Arghya) – उगते सूर्य को अर्पण और व्रत का समापन
यह दिन छठ पूजा का सबसे शुभ और भावनात्मक क्षण होता है।
व्रती सुबह बहुत जल्दी उठकर उगते सूर्य (Rising Sun) को अर्घ्य देते हैं।
यह समय जीवन के नए आरंभ, नई ऊर्जा और नई उम्मीदों का प्रतीक है।
अर्घ्य के बाद व्रती व्रत खोलते हैं (पारण करते हैं) और परिवारजनों को आशीर्वाद देते हैं।
➡️ महत्व:
उगते सूर्य को अर्घ्य देना नए जीवन, स्वास्थ्य, और समृद्धि की कामना का प्रतीक है।
इस दिन लोग अपने घर लौटते हैं, प्रसाद बांटते हैं और सामूहिक रूप से खुशियाँ मनाते हैं।
छठ पूजा में क्या करें और क्या न करें (Do’s and Don’ts of Chhath Puja)
क्या करें (Do’s)
- घर और आस-पास की जगह को अच्छी तरह साफ रखें।
- प्रसाद और पूजा सामग्री को पूरी शुद्धता से तैयार करें।
- व्रत के दौरान पवित्रता और संयम बनाए रखें।
- नदी या तालाब में स्नान करते समय सावधानी रखें।
- प्रसाद बनाते समय लोहे या स्टील के बर्तनों का उपयोग न करें, मिट्टी या पीतल के बर्तन का करें।
- सूर्य देव और छठी मैया की पूजा श्रद्धा और मन से करें।
क्या न करें (Don’ts)
- प्रसाद को किसी भी स्थिति में अपवित्र न करें।
- व्रती का उपवास तोड़ना या बाधित करना अशुभ माना जाता है।
- पूजा स्थल पर मांस, शराब या किसी भी नकारात्मक चीज़ का प्रयोग न करें।
- छठ घाट की पवित्रता का अपमान न करें।
छठ पूजा का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक योग-साधना के समान है।
यह मनुष्य को प्रकृति से जोड़ता है, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है।
इसके अलावा, यह पर्व समानता और सामूहिकता का भी प्रतीक है — क्योंकि इसमें सभी जाति, वर्ग और धर्म के लोग एक साथ भाग लेते हैं।
आधुनिक समय में छठ पूजा (Chhath Puja in Modern Times)
आज के डिजिटल युग में छठ पूजा केवल भारत तक सीमित नहीं है — बल्कि USA, UK, Canada, UAE और अन्य देशों में बसे भारतीय भी इसे बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।
सोशल मीडिया पर #ChhathPuja, #ChhathPuja2025, #ChhathVrat जैसे hashtags ट्रेंड करते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
छठ पूजा न केवल सूर्य देव और छठी मैया की उपासना है, बल्कि यह संयम, शुद्धता और कृतज्ञता का पर्व है।
यह हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन और अनुशासन ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
जब मनुष्य प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति आभार व्यक्त करता है, तभी सच्ची भक्ति पूर्ण होती है।


