Gita Chapter 1 Shlok 11–20: युद्ध घोष, शंखनाद और पांडवों का साहस

भगवद्गीता अध्याय 1 – भाग 2 (श्लोक 11 से 20)
भगवद्गीता अध्याय 1 भाग 2

भगवद्गीता अध्याय 1 – भाग 2

श्लोक और अर्थ सुनें
गीता के प्रथम अध्याय के इस द्वितीय भाग में हम श्लोक 11 से 20 तक का अध्ययन करेंगे। यहाँ दुर्योधन अपनी सेना को भीष्म पितामह की रक्षा करने का निर्देश देते हैं। इसके पश्चात् युद्ध का शंखनाद होता है और दोनों पक्षों के महान योद्धा अपने-अपने शंख बजाते हैं। अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से अपना रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले जाने की प्रार्थना करते हैं। यह वह क्षण है जब अर्जुन को अपने सामने खड़े प्रियजनों को देखकर विषाद होने वाला है।
अध्याय 1 • श्लोक 11
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।
अर्थ:
अतः आप सभी अपनी-अपनी मोर्चाबंदी में अपने-अपने स्थान पर दृढ़तापूर्वक स्थित रहते हुए विशेष रूप से भीष्म पितामह की सब ओर से रक्षा करें। दुर्योधन यहाँ अपनी सेना को स्पष्ट निर्देश दे रहे हैं कि वे सबसे पहले भीष्म की सुरक्षा सुनिश्चित करें, क्योंकि उन्हें ही अपनी सेना का सबसे बड़ा आधार मानते हैं। यह श्लोक सैन्य रणनीति और नेतृत्व की रक्षा के महत्व को दर्शाता है।
अध्याय 1 • श्लोक 12
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।
अर्थ:
दुर्योधन में हर्ष उत्पन्न करते हुए कुरुवंश के वृद्ध पितामह भीष्म ने सिंह की तरह गर्जना करते हुए अत्यंत जोर से अपना शंख बजाया। प्रतापी भीष्म पितामह दुर्योधन की चिंता को समझते हुए उनका मनोबल बढ़ाने के लिए सर्वप्रथम शंखनाद करते हैं। यह युद्ध के आरंभ का संकेत था और इससे कौरव सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। भीष्म का यह कार्य उनके सेनापति धर्म और दुर्योधन के प्रति उनकी वचनबद्धता को दर्शाता है।
अध्याय 1 • श्लोक 13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।।
अर्थ:
उसके पश्चात् शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और तुरही आदि सभी वाद्य यंत्र एक साथ बज उठे और उनका संयुक्त स्वर अत्यंत भयंकर और कर्णभेदी हो गया। भीष्म के शंख बजाने के तुरंत बाद कौरव सेना के सभी वाद्य एक साथ बजने लगे। यह दृश्य युद्ध के भयावह वातावरण को चित्रित करता है। इस घोर शब्द से संपूर्ण आकाश और पृथ्वी गूंज उठे और युद्ध का औपचारिक आरंभ हो गया।
अध्याय 1 • श्लोक 14
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः।।
अर्थ:
इसके पश्चात् श्वेत घोड़ों से जुते हुए भव्य रथ में बैठे हुए भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी अपने दिव्य शंख बजाए। कौरव सेना के शंखनाद के उत्तर में अब पांडव पक्ष से शंख बजने लगे। श्रीकृष्ण और अर्जुन का एक ही रथ में होना अत्यंत महत्वपूर्ण है – यह दर्शाता है कि भगवान स्वयं अर्जुन के सारथि बने हैं। उनके शंख दिव्य थे, जो विशेष शक्ति और पवित्रता के प्रतीक थे।
अध्याय 1 • श्लोक 15
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।
अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया और भीमकर्मा भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। प्रत्येक महान योद्धा के शंख का अपना विशेष नाम और महत्व था। पाञ्चजन्य श्रीकृष्ण का दिव्य शंख था जो विजय का प्रतीक था। देवदत्त अर्जुन का शंख था जो देवताओं द्वारा दिया गया था। भीम का पौण्ड्र शंख अत्यंत विशाल और गर्जनादार था, जो उनकी अपार शक्ति का परिचायक था।
अध्याय 1 • श्लोक 16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।
अर्थ:
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया, नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।
अध्याय 1 • श्लोक 17
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।
अर्थ:
हे राजन् श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी तथा धृष्टद्युम्न एवं राजा विराट और अजेय सात्यकि? राजा द्रुपद और द्रौपदीके पाँचों पुत्र तथा लम्बीलम्बी भुजाओंवाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु इन सभीने सब ओरसे अलगअलग (अपनेअपने) शंख बजाये।
अध्याय 1 • श्लोक 18
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।
अर्थ:
हे राजन् राजा द्रुपद द्रौपदी के पुत्र और महाबाहु सौभद्र (अभिमन्यु) इन सब ने अलगअलग शंख बजाये।
अध्याय 1 • श्लोक 19
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ||
अर्थ:
वह भयंकर घोष आकाश और पृथ्वी पर गूँजने लगा और उसने धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण कर दिये
अध्याय 1 • श्लोक 20
अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ||
अर्थ:
हे महीपते इस प्रकार जब युद्ध प्रारम्भ होने वाला ही था कि कपिध्वज अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को स्थित देखकर धनुष उठाकर भगवान् हृषीकेश से ये शब्द कहे।

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