भगवद्गीता अध्याय 1 – भाग 3 (श्लोक 21 से 30)
श्लोक और अर्थ सुनें
इस भाग में हम भगवद्गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 21–30 का अध्ययन करेंगे।
इन श्लोकों में अर्जुन का आंतरिक संघर्ष सामने आता है — युद्धभूमि पर अपने ही स्वजन और मित्रों को देखकर अर्जुन का मन विचलित हो उठता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को देखते हैं और आगे आने वाले उपदेश का वह आरम्भ है जो हमें धैर्य, कर्तव्य और विवेक का पाठ पढ़ाता है।
अध्याय 1 • श्लोक 21
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते |
अर्जुन उवाच —
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।। 21।।
अर्जुन उवाच —
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।। 21।।
अर्थ:
अर्जुन बोले — हे अच्युत (कृष्ण)! मेरा रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कर दीजिए ताकि मैं उन सभी योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध करने के लिए यहाँ खड़े हैं।
अर्जुन बोले — हे अच्युत (कृष्ण)! मेरा रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कर दीजिए ताकि मैं उन सभी योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध करने के लिए यहाँ खड़े हैं।
अध्याय 1 • श्लोक 22
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् |
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।। 22।।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।। 22।।
अर्थ:
अर्जुन पूछ रहे हैं कि किन-किन लोगों के साथ उन्हें इस रण में संग्राम करना है — किसके विरुद्ध और किसके साथ युद्ध होगा।
अर्जुन पूछ रहे हैं कि किन-किन लोगों के साथ उन्हें इस रण में संग्राम करना है — किसके विरुद्ध और किसके साथ युद्ध होगा।
अध्याय 1 • श्लोक 23
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।। 23।।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।। 23।।
अर्थ:
मैं उन लोगों को देखना चाहता हूँ जो दुर्योधन की प्रसन्नता हेतु युद्ध में आने के लिए उत्सुक होकर इकट्ठे हुए हैं — वे युद्ध को प्रिय मानते हुए भीषण परिस्थिति में आए हैं।
मैं उन लोगों को देखना चाहता हूँ जो दुर्योधन की प्रसन्नता हेतु युद्ध में आने के लिए उत्सुक होकर इकट्ठे हुए हैं — वे युद्ध को प्रिय मानते हुए भीषण परिस्थिति में आए हैं।
अध्याय 1 • श्लोक 24
संजय उवाच —
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्योगे स्थापयित्वा रथोत्तमम्।। 24।।
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्योगे स्थापयित्वा रथोत्तमम्।। 24।।
अर्थ:
संजय कहते हैं — अर्जुन के कहना सुनकर हे भारत (धृतराष्ट्र)! हृषीकेश (कृष्ण) ने श्रेष्ठ रथ को दोनों सेनाओं के मध्य रोका तथा रथस्थ होकर अर्जुन को देखने का अवसर दिया।
संजय कहते हैं — अर्जुन के कहना सुनकर हे भारत (धृतराष्ट्र)! हृषीकेश (कृष्ण) ने श्रेष्ठ रथ को दोनों सेनाओं के मध्य रोका तथा रथस्थ होकर अर्जुन को देखने का अवसर दिया।
अध्याय 1 • श्लोक 25
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।। 25।।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।। 25।।
अर्थ:
कृष्ण ने कहा — हे पार्थ! देखो, भीष्म, द्रोण और सभी प्रधानराजा-योद्धा यहाँ एकत्रित होकर खड़े हैं — ये सभी कुरु कुल के सम्मिलित सेनापति हैं।
कृष्ण ने कहा — हे पार्थ! देखो, भीष्म, द्रोण और सभी प्रधानराजा-योद्धा यहाँ एकत्रित होकर खड़े हैं — ये सभी कुरु कुल के सम्मिलित सेनापति हैं।
अध्याय 1 • श्लोक 26
ततः पश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।। 26।।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।। 26।।
अर्थ:
तब अर्जुन ने अपने पिताओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को स्थिर अवस्था में देखा — सभी अपने-अपने स्थानों पर खड़े थे।
तब अर्जुन ने अपने पिताओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को स्थिर अवस्था में देखा — सभी अपने-अपने स्थानों पर खड़े थे।
अध्याय 1 • श्लोक 27
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तांसमीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।। 27।।
तांसमीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।। 27।।
अर्थ:
दोनों सेनाओं में उपस्थित अपने सासुर, शुभचिंतक और अन्य संबंधियों को देखकर अर्जुन का हृदय करुणा से भर उठा — सभी बन्धु-रिश्तेदार इस रण में विराजमान थे।
दोनों सेनाओं में उपस्थित अपने सासुर, शुभचिंतक और अन्य संबंधियों को देखकर अर्जुन का हृदय करुणा से भर उठा — सभी बन्धु-रिश्तेदार इस रण में विराजमान थे।
अध्याय 1 • श्लोक 28
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् |
अर्जुन उवाच —
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।। 28।।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।। 28।।
अर्थ:
अर्जुन बोले — हे कृष्ण! अपने ही लोगों को युद्ध के लिए उत्सुक खड़ा देखकर मेरे अंग ढीले पड़ रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है।
अर्जुन बोले — हे कृष्ण! अपने ही लोगों को युद्ध के लिए उत्सुक खड़ा देखकर मेरे अंग ढीले पड़ रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है।
अध्याय 1 • श्लोक 29
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति |
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।29।।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।29।।
अर्थ:
मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है। मेरे शरीर में कम्प हो रहा है और रोमांच हो रहा है।
मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है। मेरे शरीर में कम्प हो रहा है और रोमांच हो रहा है।
अध्याय 1 • श्लोक 30
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते |
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन:। 30।।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन:। 30।।
अर्थ:
गाण्डीव मेरे हाथ से फिसल रहा है, और मेरी त्वचा जल रही है। मैं खड़ा नहीं रह सकता और मेरा मन जैसे चक्कर खा रहा है।
गाण्डीव मेरे हाथ से फिसल रहा है, और मेरी त्वचा जल रही है। मैं खड़ा नहीं रह सकता और मेरा मन जैसे चक्कर खा रहा है।


